तम्बाकू को अलविदा
कुण्डलिया
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तम्बाकू को अलविदा, कह दो करो न देर।
खुला निमंत्रण रोग को, है यह देर सवेर।
है यह देर सवेर, मुक्त हो इससे जीवन।
तब आए आनंद, खिले जीवन का मधुबन।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, न मारो खुद को चाकू।
करें कभी न स्पर्श, जहर समझें तम्बाकू।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य