तमाशा देखकर ह
सबका एक ही रंग…
बोलने का एक ही ढंग
देश इतना कब बदला
तमाशा देखकर हूं दंग।
कहाँ किसी को परवाह हैं
सबको कुर्सी की चाह हैं
पक्ष विपक्ष अप्रत्यक्ष हैं
दम्भ में सरकार भी हैं मतंग
मैं ये तमाशा देखकर….
सुबह घर में जब अख़बार आता हैं
झूठ और झूठ से भरा समाचार आता हैं।
कौन समझाए किसी को क्या ख़बर
वो एक ही हैं जिसने मचा रखा हैं हुड़दंग
मैं ये तमाशा…
बंद कमरों में लूट रहा हैं मेरा देश
लुटेरा लूटकर चला गया परेदश।
गलियों में लुट रही हमारी बेटियां
हम ही पाले बैठे हैं ख़ुद में दबंग
मैं ये तमाशा ….
कोई हिन्दू हैं, कोई मुसलमान हैं
अरे शर्म करों, हम सब इंसान हैं।
क्या तेरा मेरा कोई पहचान हैं
अब और कितने लड़ोगे जंग
मैं ये तमाशा….