तमाल छंद
हिंदी के दोहा छंद की तरह चौपाई छंद से भी अनेक छंदो का सृजन होता है , इस क्रम में तमाल छंद भी सृजन होता है
#तमाल ,छंद (सम मात्रिक ) शिल्प विधान –चौपाई +गुरु लघु (16+3=19) अंत में यति
सुनते जिसकी मीठी बानी आप |
यश का पीता है वह पानी नाप ||
कटुक वचन जो मुख उच्चारें गान |
अपयश उसके गेह पधारें जान ||
ह्रदय हीन नर पत्थर माने लोग |
दया धर्म का नूर न जाने योग ||
नही समझते जो मजबूरी गान |
चार कदम की रखिऐ दूरी तान ||
देखी चम्पा की है क्यारी आन |
पराग रहित वहाँ फुलबारी जान ||
सुगंध कीर्ति वह फैलाता रोज |
फिर भी भौरा पास न करता मोज ||
लोभी का धन कपटी खाता देख |
नही लोटकर वह है आता लेख ||
धन से जिसने प्रीति बढ़ाई शान |
जीवन होता है दुखदाई. मान ||
नीति अनीति न मूरख जानें यार |
अपनी धुन में वह है मानें रार ||
जो नर मूरख को समझाता आन |
वह खुद मूरख ही कहलाता मान ||
सुखी नही ज्ञानी का सुनकर ज्ञान |
होती है हैरानी लखकर जान ||
रोग शोक का यह संसारा यार |
तृष्णा माया का जयकारा तार ||
जुता बैल -सा यह नर घूमें रोज |
राग व्देष की करनी चूमें खोज ||
छल छंदो की रची कहानी देख |
करता रहता है नादानी लेख ||
======सुभाष सिंघई ======
© सुभाष सिंघई
एम•ए• हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र
जतारा (टीकमगढ़) म०प्र०
आलेख- सरल सहज भाव शब्दों से छंदों को समझानें का प्रयास किया है , वर्तनी व कहीं मात्रा दोष हो तो परिमार्जन करके ग्राह करें
सादर