तमाम उम्र बिता दी मगर नहीं जाना।
तमाम उम्र बिता दी मगर नहीं जाना।
कि जिंदगी के सफर को सफर नहीं जाना।
कठिन हो राह तेरी और दूर मंजिल हों,
सफर में हौसला रखना बिख़र नहीं जाना।
हरेक क़तरे में अश्क़ो के नूर भर देना,
गमों का सामना हो तो सिंहर नहीं जाना।
खुशी का चांद तो गम की घटा से निकलेगा,
हवाएं हों जो मुख़ालिफ तो ड़र नहीं जाना।
तुम्हीं तो एक निशानी हो मेरी उल्फ़त की
छलकते रहना मेरे ज़ख़्म भर नहीं जाना।
हर एक नक़्शे कदम को बनाना है सूरज़
चले हो सू ए सफर तो ठहर नहीं जाना।
गया है छोड़ के दारो रसन इक तोहफा,
जुनून ए इश़्क था वो सर को सर नहीं जाना।
मुझे बताता है रिश्तों के पास की बातें,
वो एक शख़्स जो घर को घर नहीं जाना।
रहा वो ‘राज’ फ़क़त लाश जैसे दुनिया में,
वफा न समझा, मुहब्बत को गर नहीं जाना।
——–राजश्री——-