तमस् से जागरण की ओर.
आये है हम प्रेमी बनकर,
हर नफरत को मिटा देंगे,
लाख फैला दो पाखंड आज,
हम जागरण मनाने आये हैं ,
जल रहा शहर आज क्रोध से,
प्रेम पुष्पों से हम पार पायेंगे ,
बढ़ रहे दुख-संताप विलाप आज,
अंतस में हैं स्त्रोत मूल देखो आज,
गिर जायेंगे सब राग-रोग द्वेष अभी,
भूल गये अटकलें याद दिलाने आये है.
मिट जाता है हर तरफ तमस् .
जागरण की मशाल जला लो.
तुम पावोगे अजब ढाल आज,
इतना सा बस कहण पुगा लो.
डॉ_महेन्द्र