तमन्ना
मैं खुद के पास आने चाहती हूं
गमों से दूर जाना चाहती हूं
अंधेरा बढ़ गया है मेरे भीतर
सितारे तोड़ लाना चाहती हूं।
छुपी है घर में इक डरपोक लड़की
उसे दुनिया घुमाना चाहती हूं।
मेरी मुट्ठी से जो फिसले थे लम्हे
उन्हें चुन चुन के लाना चाहती हूं।
मैं खुद के पास आने चाहती हूं
गमों से दूर जाना चाहती हूं
मेरे दिल पर सिर्फ हो मेरा कब्ज़ा
मैं हक़ ये मालिकाना चाहती हूं।
कई सालों से बुलबुल कैद में है
मैं पिंजरा खोल देना चाहती हूं।
गुलामी ज़िन्दगी ना, इक सज़ा है
अब रिहा हो ही जाना चाहती हूं।
दीवारों को सुनाई मन की बातें
वो अब तुम को सुनाना चाहती हूं।
मैं खुद के पास आना चाहती हूं
गमों से दूर जाना चाहती हूं
मुद्दतें हो गईं हैं मुस्कुराए
मैं जी भर खिलखिलाना चाहती हूं।
हंसू इतना कि आँसूं छलके मेरे
मैं खुद से बाहिर आना चाहती हूं।
हैं कायम हौंसले या ढह गए हैं
मैं खुद को आज़माना चाहती हूं।
मैं खुद के पास आने चाहती हूं
गमों से दूर जाना चाहती हूं
काश टूटे वो तारा आसमाँ से
तमन्ना लब पे लाना चाहती हूं।
मैं जी भर मुस्कुराना चाहती हूं।
मैं खुद को आजमाना चाहती हूं
मैं खुद से बाहिर आना चाहती हूं।
सितारे तोड़ लाना चाहती हूं।
धीरजा शर्मा