*तमन्ना* है मेरे मालिक जमीन- ए- हिंद ही पाएं
अगर इंसान बनकर के जहां में फिर कहीं आएं
तमन्ना है मेरे मालिक जमीन- ए- हिंद ही पाएं
कई मजहब कई जाति कई मतभेद दिखते हैं
हिफाज़त हिन्द की हो तो नज़र सब एक ही आएं
सनातन सभ्यता कायम यहां के जर्रे जर्रे मे
रहे ये सभ्यता कायम भले मिटते हैं मिट जाएं
यहां की वीरता दृढ़ता स्वयं इतिहास कहता है
छुड़ाते छक्के दुश्मन के अगर रण में जो अड़ जाएं
यहीं पे साधु सन्यासी हमारे पीर पैगमर
फरिश्ते भी तरसते हैं यहां आकर के बस जाएं
जनम के साथ मरना भी मुकर्रर होता है योगी
अमर वो नाम होते हैं वतन के काम जो आएं