तब याद तुम्हारी आती है (गीत)
तब याद तुम्हारी आती है
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मन-बन के बीच झरोंखो से,
ये पुरवाई जब चलती है |
और पवन के इन झोंको से ,
मन में ज्योति सी जलती है |
मन हूंक –हूंक रह जाता है ,
जब कोयल गीत सुनाती है |
तब याद तुम्हारी आती है ||
चांदनी रात में तारों से ,
ये तनहा मन जब मिलता है |
रिमझिम सावनी फुहारों से ,
तब पुष्प ह्रदय में खिलता है |
जब बिह्वल दुपहरी में होकर ,
टीटहरी टेर लगाती है ….|
तब याद तुम्हारी आती है ||
तरुणाई से यौवन मिलता ,
बात-बात पर हरसाता है |
भौरां भी जब पात-पात पर ,
सरस मधुर गीत सुनाता है |
बौराये आमो की डलियो
से, मंद हवा टकराती है |
तब याद तुम्हारी आती है ||
प्रकृति ये जब युवती बनती ,
तो समिर गुलाल उडाता है |
फूलों से रस चोरी कर भी ,
ये अम्बुद गीत सुनाता है |
बगिया में अठखेली करने ,
जब तितली मुझे बुलाती है|
तब याद तुम्हारी आती है ||
नीरज भी जब नीर सेज पर,
जब मंद-मंद मुसकाता है |
और उषा की किरणे लेकर ,
जग में दिवाकर आता है |
तो हिय में भी जलती मेरे ,
क्यों ये प्रीत की बाती है |
तब याद तुम्हारी आती है ||
थककर तपता दिनकर जब भी ,
अपने निजघर को चलता है |
मेरे “तनहा” मन में उसपल ,
कैसा मधुर भाव पलता है |
चहक-चहककर इस पीपल पर ,
जब-जब भी बिहंगे गातीं है |
तब याद तुम्हारी आती है ||