तब मां याद आती है
जब चोट गहरी लगती है
तब मां याद आती है…
कभी प्यार कभी दुलार
तो कभी डांट से समझाती है…..
दूर मत जाना, खो जाओगे
गिर गए तो चोटिल हो जाओगे
बार बार यही याद दिलाती है……
पर… पर हम कहां सुनते हैं
उल्टा उसे सुनाते हैं….
देखो चांद मंगल तक
जा आए हम…
जहां जंगल थे कल
वहां बस्तियां बसा आए हम…
खेतों को उजाड़
कारखाने सजा आए हम…
पुराने ख्यालों की हो,
नहीं समझोगी तुम
हर बार यही कहते आए हम…..
लेकिन जब गिरते हैं
और चोट गहरी लगती है
तब ..तब मां ही याद आती है…..
इस बार ….इस बार शायद
वो ज्यादा ही नाराज़ है
जो सुनी नहीं अब तक फरियाद है
लेकिन है तो मां ही आखिर
हर बार तो माफ़ करती अाई है
अब भी गले लगाएगी
ममता भी बरसाएगी…
पर हमको भी समझना होगा
कहां भूल हुई ये तो सोचना होगा
माफ करते करते कहीं
वो छोड़ ही न जाए हमें
इसलिए ….
सम्भल कर पग धरना होगा
अपनी तेज़ रफ्तार को
थोड़ा तो विराम देना होगा ।।