तब घर याद आता है
आंखें नम हो जाती हैं
याद मां की आती है ,
जब भूख सताती है
तब घर याद आता है!
दिल में दवी ख्वाहिश
जब अधूरी रहती है ,
जेब खाली होता है
तब घर याद आता है !
आंख जब उठाता हूं
अपने नहीं दिखते है ,
बेगानों की बस्ती हो
तब घर याद आता है !
जब हमारे पूरे होते
सपने नहीं दिखते हैं,
जब आंसू नहीं टिकते
तब घर याद आता है !
बाजार में देखता हूं
हर चीज बिक रही है,
पर वहां रिश्ते नहीं है
तब घर याद आता है!
बचपन की यादें जब
बार-बार आ जाती हैं,
रूह महका जाती हैं
तब घर याद आता है !
पिताजी की सीख जब
कहीं पर काम आती है,
कई अनुभव दे जाती है
तब घर याद आता है !
मां की गोद में सोने का
जब मन मेरा करता है,
जब मां याद आती है
तब घर याद आता है !
होटलों का खाना जब
रास नहीं आता मुझको,
पैसा ज्यादा जाता हो
तब घर याद आता है !
मां के हाथ के खाना
मिले हो जाए जमाना,
मां के हाथ की खुशबू
तब घर याद आता है !
मालिक जब नौकरी में
बात बात पे सुनाता हो,
जब पगार ना भाता हो
तब घर याद आता है !
जब अंधेरों का आलम
जीवन में छा जाता है
समय विपरीत आता है
तब घर याद आता है
आज की नई पीढ़ी
उम्मीद तोड़ जाती है ,
मर्जी अपनी चलाती है
तब घर याद आता है !
मेहनत करते करते
बदन टूटने लगता है,
कोई रुठने लगता है
कब घर याद आता है !
सूरज की किरण जब
लौट कर चली जाती है,
जब निशा आ जाती है
तब घर याद आता है !
बड़ी-बड़ी इमारतें हो
रास नहीं आ आती हैं,
मन न मिल पाता हो
तब घर याद आता है!
जब स्कूल की यादें हमें
फिर फिर हमें सताती हैं
जब दोस्त याद आते हैं
तब घर याद आता है !
जब बचपन के किस्से
मां दुनिया को सुनाती है,
हरकतें मेरी बताती है
तब घर याद आता है!
जब अध्यापक की बातें
दिल मेरा छू जाती हैं ,
दिल में आग लगाती हैं
तब घर याद आता है !
जो कई वर्षों का प्यार
हमें छोड़कर जाता है ,
वादा तोड़ वो जाता है
तब घर याद आता है !
दिखावटी दुनिया में
सादा जीवन भाता है,
बाजार बुद्धू बनाता है
तब घर याद आता है !
बच्चा कोई रो-रो कर
जब खिलौना लाता है ,
बचपन याद दिलाता है
तब घर याद आता है !
अपनों को जब कोई
बुरा भला कह जाता है,
खून खौल जाता है
तब घर याद आता है !
गांव की खुशबू जब
भी मुझे सताती है ,
जब भी खत आता है
तब घर याद आता है !
बहन की विदाई की
याद जब आती है ,
आंखें भर जाती हैं
जब घर याद आता है
✍कवि दीपक सरल