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24 Jul 2021 · 1 min read

तब कहीं जाकर के कोई फूल खिलता है।

गज़ल
2122……2122……2122……2
बागवाँ जब खूँ पसीना दिन लगाता है।
तब कहीं जाकर के कोई फूल खिलता है।

साल भर रमजान का इँतजार रहता है।
ईद के तब चाँद का दीदार होता है।

छोड़कर वाहेगुरू भगवान अल्ला को,
कौन बेघर औ गरीबों की भी सुनता है।

कौन जाने कितनी मेहनत है किसानों की,
तब कहीं जाकर हमें खाने को मिलता है।

कोई भी उसका नहीं सानी जहाँ में है,
वीर धरती माँ पे जो कुर्बान होता है।

खिलने से पहले मसल दे औ कुचल दे जो,
आदमी है वो नहीं हैवान होता है।

मुफलिसों को प्यार जो करता दिलोजां से,
आदमी के रूप में भगवान रहता है।

इश्क से बचकर कहाँ रह पाये हैं प्रेमी,
आँखों आँखों में तुरत परवान चढ़ता है।

…….✍️ प्रेमी

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