तबाही
देखो ,एक बार और, तबाही
मुझको गले लगाने आई है।
नवंबर की बदतमीजी से
दिसंबर की शर्माहट तक
2:30 बजे की घड़ी की टिक-टिक
मुझे कहां भगा कर लाई है!
देखो, एक बार और, तबाही
मुझको गले लगाने आई है ।
नींद का उड़ना, चैन का जाना,
इसमें कोई नई बात नहीं,
यह धड़कन जो तेज हुई है
बीते कल की परछाई है।
पहले भी दिल मेरा धड़का था,
पहले भी आंखें लाल हुई थी;
अबके गले में जैसे कुछ अटका है,
सांसों में आंधी आई है।
देखो, एक बार और, तबाही
मुझको गले लगाने आई है ।
तबाही कहना उचित नहीं ,
कोई और शब्द उपयुक्त नहीं ।
धक धक धक धक- टिक टिक टिक टिक
कैसी खामोशी छाई है !
देखो ,एक बार और, तबाही
मुझको गले लगाने आई है ।
अक्स का वास्तव से मिलन
किस दर्पण में हो पाया है ?
पर यह अक्स कितना असली है !
मेरी रूह बाहर आई है।
देखो, एक बार और, तबाही
मुझको गले लगाने आई है ।।