तप रहे हैं दिन घनेरे / (तपन का नवगीत)
भाप बहती
है सबेरे,
तप रहे हैं
दिन घनेरे ।
आँख तपती,
कान तपते,
तप रही है
वात बहती ।
साँझ तपती,
याम तपते,
तप रही है
रात ढहती ।
चाँद ने
नैना तरेरे ।
तप रहे हैं
दिन घनेरे ।
पत्तियों के
उजड़ने से
तप रही
संपूर्ण वन्या ।
मंद भावों
की तपन से
तप रही है
धान्य-धन्या ।
जल रहे हैं
घर,बसेरे ।
तप रहे हैं
दिन घनेरे ।
तप रहे
नक्षत्र सारे,
कुण्डली के
मेल तपते,
लग्न,भाँवर
की तपन से
शुभाशुभ के
खेल तपते ।
दग्ध हैं अब
सात फेरे ।
तप रहे हैं
दिन घनेरे ।
— ईश्वर दयाल गोस्वामी