तप रही धरा
तप रही धरा,
सुन ले तू जरा,
नभ उगल रहा आग,
जाए कहाँ हम भाग,
नर तू अब तो जाग,
कब तक रहे ताक,
कट रहे रोज जंगल,
हो रहा स्वार्थ का मंगल,
भविष्य का दंगल,
चुभ रहे कंकर,
पेड़ विहीन बंजर,
गिर गया देखो जल स्तर,
बादल भी गए छोड़ अम्बर,
जल बिना हैं सब सूना,
कल को हैं सब खोना,
भाग रही हैं जीवन की गाड़ी,
रुक नही सकती हाथ की नाड़ी,
लगा ले पेड़ मिलकर हम,
ले संकल्प धरा को बचा ले हम,
।।।जेपीएल।।