*तपसी वेश सिया का पाया (कुछ चौपाइयॉं)*
तपसी वेश सिया का पाया (कुछ चौपाइयॉं)
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1
तपसी वेश सिया का पाया ।
मुदित जनक का मन मुस्काया।।
कहा मान दो कुल का बढ़ता ।
पग जब सुपथ सुता का चढ़ता।।
2
तपसी वेश सिया जब पाईं ।
ऑंखें भर-भर सबकी आईं।।
जो पलंग से पैर न धरतीं।
वह तपस्विनी वेश विचरतीं।।
3
कौशल्या के सदा दुलारे ।
भरत रहे ऑंखों के तारे ।।
भरत त्याग की मूरत जैसी ।
कहा राम ने उपमा कैसी।।
4
भरत चाहते हैं वन जाऊॅं।
ग्लानि-भाव से यों उठ पाऊॅं।।
सब तीर्थो का जल रखवाया ।
अत्रि देव ने कुऑं बताया।।
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रचयिता :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451