तन हरा मन नारंगी कर दो
कभी पठार सा कठोर
कभी दूब सा नरम
कभी बादल सा बरसता
कभी भूमि सा स्थिर
गतिमान है
चलायमान है
यह मन बहुत
रहस्यमयी भी
कहां से पाऊं
अपने भीतर
थोड़ी सी स्थिरता
थोड़ी देर के लिए ही चलो सही
प्रकृति मुझे अपना शिष्य स्वीकारो
ना
थोड़ा सा ज्ञान भर दो
मेरे मन के किसी कोने में
कहीं
तुम्हारी आंख से मैं भी
देख पाऊं
समझ पाऊं
आत्मा के सौन्दर्य को
इस सृष्टि की रचनात्मकता को
तुम्हारी गोद में पल रहे
हर कण की विशालता को
थोड़ा सा मेरे तन को भी
हरा कर दो
मन को नारंगी
हृदय को पवित्र
मेरे चरित्र को संतुलित
जानती हो तुम वैसे तो
भलीभांति कि
देखा जाये हूं तो मैं
अभी भी एक अबोध
विचलित सा बालक ही
मन के भीतर से कहीं।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001