*तन – मन मगन मीरा जैसे मै नाचूँ*
तन – मन मगन मीरा जैसे मै नाचूँ
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कैसा नशा है , ये कैसा है जादू,
दिल हो रहा मदहोशी में बेकाबू।
जुल्फें सुनहरी रुखसारों पर फैली,
धड़के न धड़कन भी दर्शन की मारू।
गोरा बदन गोरे गालों पर लाली,
मटके कमर गौरी चलता जैसे भालू।
लहरे लहर जैसे दरिया का आँचल,
नीले नयन से टपके टप – टप आँसू।
ठहरे कदम चलते आगे ना पीछे,
देखो तनिक मीटर दिल का चालू।
मोटे नयन जैसे हो पीतल प्याला,
छाया नशा तन-मन हो जाता धाँसू।
यूँ ख्वाब में खोया रहता मनसीरत,
तन – मन मगन मीरा जैसे मै नाचूँ।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)