“तन – मन – धन सब है झूठा”
तन – मन – धन सब है झूठा,
मोह, माया, जग है फंदा,
रात – दिन बस तुझे मैं ध्याता रहूँ,
मिट्टी की यह देह हमारी,
इक दिन मिट्टी में मिल जानी,
शुभ कर्म तू करले प्राणी,
दो – दिन की तेरी ज़िंदगानी,
ममता छोड़ समझ ले प्राणी,
जग चाहतों का है मेला,
तन – मन – धन सब है झूठा,
मोह, माया, जग है फंदा,
रात – दिन बस तुझे मैं ध्याता रहूँ,
पत्थर की तू नाँव बनायें,
पाप की गठरी सिर पे उठाये,
बैठ नाँव में तरना चाहें,
माया की ये रट लगाये,
राम – नाम तुझे न भाए,
समझ में तुझे ये न आए,
ये दुनिया है रैनबसेरा,
तन – मन – धन सब है झूठा,
मोह, माया, जग है फंदा,
रात – दिन बस तुझे मैं ध्याता रहूँ,
नौ माह तूने गर्भ में बिताये,
करणी याद कर – कर पछताये,
ईश्वर से फ़रियाद लगाये,
नर्क जून से छूट जाऊँ,
तोहें मैं हर – पल ध्याऊँ,
जान बची फिर लाखों पाय,
आकर दुनिया में रम जाये,
“शकुन” तेरी समझ में ये न आये,
तन – मन – धन सब है झूठा,
मोह, माया, जग है फंदा,
रात – दिन बस तुझे मैं ध्याता रहूँ ।।