*तन पर करिएगा नहीं, थोड़ा भी अभिमान( नौ दोहे )*
तन पर करिएगा नहीं, थोड़ा भी अभिमान( नौ दोहे )
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1)
तन पर करिएगा नहीं, थोड़ा भी अभिमान
निकली आत्मा लो गया, सीधा यह शमशान
2)
चलता-फिरता आदमी, सॉंसों का सब खेल
आत्मा एक कमाल है, पॉंच तत्व का मेल
3)
चार दिवस की चॉंदनी, उजली-उजली देह
प्राण पखेरू जब उड़े, कोई करे न नेह
4)
वृद्ध-जनों का कीजिए, झुका शीश सम्मान
अधिक आयु का पा रहे, यह प्रभु का वरदान
5)
आगे की कैसे कटे, किसको है यह ज्ञात
सौ वर्षों में देह में, सौ-सौ झंझावात
6)
जीवन जब तक चल रहा, कर लो प्रभु का ध्यान
पुनर्जन्म से मुक्ति का, यही एक अभियान
7)
जैसे प्रभु जी रख रहे, उनकी कृपा-प्रसाद
मन में हो हर हाल में, सदा-सदा आह्लाद
8)
दो दिन के सब कष्ट थे, दो दिन के सब हर्ष
चलते-चलते कट गए, ऐसे ही सौ वर्ष
9)
प्रभु जी प्रतिदिन कर रहे, मुझ पर सौ उपकार
एक कष्ट यदि दे दिया, उसका भी आभार
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा ,रामपुर ,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451