तन्हा
मैं छोड़ आया हूं वो गलियां, जिनसे गुजरने की चाहत थी,
नीली आंखों का वो दरिया ,जिसमे कभी अपनी परछाई थी।
मैं मानता हूं इश्क का व्यापार , मुझे करना नही आता,
घाटे का सौदा है, ये बात कहां समझ में आई थी।
मैने तो अपना तन मन , अर्पण उसे किया था,
जिसको मेरे समर्पण में चाहत नही दिखाई दी।
अमित मिश्र