तन्हा
जैसे चलती रहे डगर तन्हा
ज़िन्दगी का भी है सफर तन्हा
भटके चाहे इधर उधर तन्हा
करते पर हम रहे सफ़र तन्हा
जीते जी मर ही जायेंगे हम तो
छोड़ तुमने दिया अगर तन्हा
जिसका था इंतज़ार बरसों से
कर गई आज वो खबर तन्हा
हो गए हम अलग अलग लेकिन
हम इधर और वो उधर तन्हा
लोग चलते हैं रात दिन इसपर
फिर भी कितनी है ये डगर तन्हा
ज़िन्दगी में लगे रहें मेले
आना जाना रहे मगर तन्हा
राह है ज़िन्दगी की पथरीली
काटे कटता नहीं सफर तन्हा
डूब जाते हैं हारकर अक्सर
पार होती नहीं भँवर तन्हा
पास पहले हमारे थे अपने
हो गये छूते ही शिखर तन्हा
‘अर्चना’ आँसुओं को ही पीती
पाई हमने तो हर नज़र तन्हा
15-12-2019
डॉ अर्चना गुप्ता ।
मुरादाबाद