तन्हा रास्ते
तन्हा रास्ते….
कोई होता जिसको अपना,हम अपना कह पाते कान्हा
तू भी पास नहीं सुन मेरे,जिसको मैंने अपना जाना।
तन्हा तन्हाई बस संग है और हुई दुनिया बेरंग है
दूर दूर नहीं दिखता कोई, धुंध पड़ी सुन अंधाधुंध है।
तन्हा जीवन सूनी सड़क सा,भीड़ में सुन एकाकीपन है।
हम भी तन्हा और चाँद सूरज भी डसता सबको अकेलापन है
खूब भीड़ रिश्ते नातों की पर फिर भी मनवा है अकेला
आस का दीपक जब बुझ जाए, कैसे उजास हो सान्ध्य बेला।
यूं अकेले चलते चलते हुए निष्प्रभ मनोघाव मेरे,
बर्फ शिला सम नीलम जमें हैं, चोटिल हृदय के भाव मेरे
चाल गति अब शिथिल हुई है, मंजिल भी कान्हा दूर है
कैसे पार होगा ये जीवन, होंसला ही जब चकनाचूर है।
-नीलम शर्मा