तन्हा था मैं
तन्हा था मैं
अकेला था मैं
फिर क्यो मैं, दूसरो को
अपना मानता रहा।
पागल था मैं।
जो बेवजहा दूसरो को
खुदा मानता रहा।
खुदा वो मुझमे भी था।
फिर भी मैं
दूसरो मे ही झाकता रहा।
जैसे आईना रखके सामने
मैं खुद को ताकता रहा।
जब पता चला
के वो वहम था मेरा।
मैं बेवजहा ही
कही ओर झाकता रहा।
खुदा कैसे मिलता जब मैं
गलत जगह ही ताकता रहा।
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