तन्हा जिंदगी अब जीया न जाती है
दोस्तों,
एक ग़जल आपकी मुहब्बतों के हवाले,,,!!
ग़ज़ल
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जी भर कर मुझ को अब सोने दो,
बांहों में तेरी मुझको अब खोने दो।
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कब से बेकरार हूँ तुमसे मिलने को ,
दो जिस्म एक जाँ मुझको होने दो।
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है जो नफरत दिल में तेरे छोड़ो भी,
इस दिल में बीज प्यार का बोने दो।
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तन्हा जिंदगी अब जीया न जाती है,
अब कंधो को बोझ तुम्हारा ढ़ोने दो।
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रुठ कर मिले हमे जो जख़्म तुम से
धोती हूँ उन जख़्मों को तो धोने दो।
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इल्तिजा है शायर “जैदि” इक तुमसे,
मुझ को फ़कत अब तुम्हारी होने दो।
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शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
बीकानेर।