||तन्हापन ||
“लगा है आज अपनापन
फिर छूने इन तन्हाईयों को
समेट तन्हा सासों की डोर
कर वीरान फिर इस जीवन को
कहता कहानी आज फिर
इस पतझड़ से जीवन की
तस्वीरों में ठहरी जीवन वृत्ति
मन के उस उपवन की ,
जम गयी थी यादों की वो परत
कल तक जो आशियाने में
आज टूटी सी वह पड़ी है
तन्हा किसी मैखाने में ,
ना शोक मुकद्दर का है उसे
ना संताप कोई है मन में
नाम है जीवन संघर्षों का
ना ख़ुशी मनाओ प्रेम मिलन में ||”