तन्हाई
ऐ दिल सच-सच बता,
क्या है तेरे दिल में ?
क्यों तू तनहा है
इस भरी महफ़िल में ?
धरती तेरी, अम्बर तेरा
फिर क्यों उदास है ?
सुहाना सफर है जिदंगी
क्या तुझे आभास है ?
जो छूट गए पीछे
संभव है ना मिलें बाद में
पर क्यों जलाता है स्वयं को
व्यर्थ उनकी याद में?
बुझा दे अपने ही आंसू से
अपनी इस आग को,
नये फूल फिर खिलेंगे
पर जिन्दा रख बाग़ को !!
इसलिए उठ, जाग
कर्मपथ पर बढ़
जीवन में सफल होना है तो
परिस्थियों से लड़ !!
– नवीन जोशी ‘नवल’