तन्हाई से सीखा मैंने
गीत
तन्हाई से सीखा मैंने कठिन साधना करना
बूंद बूंद की स्याही से कागज पर जीवन लिखना।
अरमानों को कभी नहीं पथ से विचलित होना
श्रम के स्वेद कणों से पथ के रेखा पर चलना
आसमान से स्वच्छ विचारों के सागर आते हैं
लगते गोते समर भूमि में विजय श्री पाते हैं
फलीभूत मानस रंजन के संग संग सदा तैरना
तन्हाई से सीखा मैंने कठिन साधना करना।।
सागर के सीपों के मोती सा है भरा खजाना
लेख रेख के अनुसंधानों से ही उसको पाना
तूफानों संग आंख मिचौली जो सदैव करते हैं
बिखरे मोती दाने जैसे कण कण में पलते हैं।।
व्यर्थ नहीं करना श्रम को पल पल बढ़ते जाना
तन्हाई से सीखा मैंने कठिन साधना करना।।
बाजीगर बन जग में जिसने सीखा पलना
इस दुनिया के मेले कैसे उसको रहना
कदम कदम पर चौराहे उनका स्वागत करते हैं
नेह साधना की झोली सबकी नित भरते हैं।।
कपट मैल के भावों से हरदम बचकर रहना
तन्हाई से सीखा मैंने कठिन साधना करना।।
©® मोहन पाण्डेय ‘भ्रमर ‘
हाटा कुशीनगर उत्तर प्रदेश