तन्हाई भी
तन्हाई भी
कभी कभी
खुद से घबराकर
दम तोड़ने लगती है
समझाना पड़ता है फिर
उसे किसी अनुभवी
व्यक्ति की तरह
बहलाना पड़ता है
हाथ में झुनझुना
पकड़ाकर एक
बच्चे की तरह
यह दिलासा देना और
यह भरोसा दिलाना पड़ता है कि
एक तुम नहीं
सबकी जिन्दगियों का यही
आलम है
होठों पर जैसे ही आ जाती है
उसके हल्की सी
मुस्कुराहट
तन्हाई को उसे
खुशहाल छोड़कर
वहां से
चाहे वह जहां जाना चाहे
जाना ही पड़ता है।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001