तन्हाइयों में रात
तन्हाइयों में रात गुजरती चली गयी।
जिंदगी अपने बात से मुकरती चली गयी।
हम सोचते रहे के ये क्या हो गया ,
कि पाँव के नीचे से धरती चली गयी।
तन्हाइयो में रात गुजरती चली गयी।
वक्त ने पटखनी दी है मुझको इस कदर।
आता नही है कुछ भी मुझको अब नजर।
जिंदगी हर एक दाँव से पटकती चली गयी।
तन्हाइयो में रात गुजरती चली गयी।
अब तो निकल चुका है खुशियों का जनाजा।
कहते है लोग ये है बस वक्त का तकाजा।
ये आसमानी खुशियां गिरती चली गयी।
तन्हाइयो में रात गुजरती चली गयी।
उम्मीद था के वक्त भी बदल ही जायेगा।
बुरे के बाद फिर से अच्छा कल आएगा।
बदला न कुछ ये बात अखरती चली गयी।
तन्हाइयो में रात गुजरती चली गयी।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी