तनाव
इस लौकिक जगत में
स्थित प्रज्ञ सा सुदृढ़मना होकर भी
सदा सुरक्षित नहीं तुम मुझसे
मैं तनाव तुम्हारे मन में
निर्मित जीवन दर्शन के
सुरक्षा कवच को छेद कर
गहन अंतस को भेद कर
शांत मस्तिष्क को भी
झंकृत कर देने की
क्षणिक क्षमता रखता हूं
यदा कदा तुम्हारे धैर्य को
परखता हूं
पर जनाव ! मैं ठहरा तनाव
आखिर कब तक स्थिर रहूं
तुम्हारे सृजनरत मानस में
परास्त होना होता है मुझे
तुम्हारे सकारात्मक चिंतन की
संचित शक्ति के समक्ष
अंततः मानस से विलुप्त होना
मेरी नियति है