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27 Aug 2024 · 1 min read

तत्वहीन जीवन

क्या कहना ? क्या सुनना ?
मूकबधिर हो रह गया हूँ !

विवादों से स्वतंत्र ! स्वअस्तित्व रक्षा में
निरापद हो गया हूँ !

अर्थ और अनर्थ ! तर्क और कुतर्क के बीच डोलता किंकर्तव्यविमूड़ भाव !
किसी निष्कर्ष पर पहुँच न पाने की स्थिति से
उत्पन्न असहाय भाव !

इसे समय की पुकार कहूँ ? या
नियति प्रति समर्पण भाव ?

या शोषित अतीत ? भ्रमित वर्तमान ?
या चिंतित भविष्य ? जो मुझे इस प्रकार
व्यवहार हेतु बाध्य कर रहा है !
जो मेरे संज्ञान एवं प्रज्ञा शक्ति को
उत्प्रेरणहीन बना ! मुझे निष्पंद जड़़ बना रहा है !

जीवन यथार्थ से विमुख ! काल्पनिक व्योम में
विचरण कर रहा हूँ !
आत्मज्ञान वंचित तत्वहीन जीवन का पर्याय
बनकर रह गया हूँ !

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