तत्वमीमांसा या मेटाफिजिक्स
तत्वमीमांसा (Metaphysics) :-
संसार में इंद्रियों से महसूस होने वाली हर वस्तु जो जीवन में वास्तविक लगती है उसका अध्ययन तत्वमीमांसा कहलाता है..!
तत्व :- जो है, जो महसूस होता है, जो वास्तविक लगता है।
मीमांसा :- किसी वस्तु के स्वरूप का यथार्थ वर्णन, व्याख्या या विश्लेषण !
अर्थता तत्व, वास्तविकता या सत्ता के स्वरूप का वर्णन या विश्लेषण ही तत्वमीमांसा है..!
तत्वमीमांसा में तत्व को सत्ता माना जाता है..!
तत्वमीमांसा के मुख्य प्रश्न:-
1- सत्ता क्या है..?
2- सत्ता किससे निर्मित है..? अर्थात इसकी मूलभूत इकाई क्या है..?
3-सत्ता का स्वरूप या आकार क्या है..?
4-सत्ता की मूलभूत इकाई एक है या अनेक है..?
5-सत्ता की व्याख्या कैसे कर सकते है…?
6-सत्ता की व्याख्या करने में क्या समस्याएं है..?
तत्वमीमांसा का केंद्रीय प्रश्न :-
★ सत्ता की मूलभूत इकाई क्या है…?
दार्शनिकों ने सत्ता की मूलभूत इकाई दो को माना है –
1- विचार, प्रत्यय (Idea)
2- पदार्थ, द्रव्य (Matter)
* अब इनदोनो के आधार पर ही दार्शनिकों की दो धाराएं निकली –
1- प्रत्ययवादी(Ideolism) – अर्थात वो दार्शनिक जो विचार को या प्रत्यय को मुख्य मानते हैं..! इनके अनुसार पहले विचार आया उसके बाद वस्तु, तत्व,सत्ता या द्रव्य का निर्माण हुआ..!
इनका मानना है कि जड़ तत्व कितना भी सामने पड़ा हो किन्तु जबतक विचार नही आएगा तब तक उस जड़ तत्व से निर्माण नही हो सकता। जैसे मिट्टी तो पहले भी थी किन्तु घड़ा नही था। इसलिए पहले पानी भरने के लिए विचार आया तब मिट्टी से यानी जड़तत्व से घड़े का निर्माण हुआ..! इसप्रकार यदि घड़ा सत्ता है तो इसकी मूलभूत इकाई घड़ा बनाने का विचार है ना कि जड़तत्व मिट्टी..! इसप्रकार प्रत्यवाद में सत्ता का अस्तित्व मनुष्य के दिमाग या विचार में होता है..!
इसप्रकार यह समस्त ब्रह्मांड भी किसी विचार की ही उत्पत्ति है। और यह विचार ईस्वर या परमब्रह्म के दिमाग का विचार होगा। अर्थात पहले ईस्वर आया और फिर ईस्वर ने इस ब्रह्मांड का निर्माण किया..!
इसप्रकार प्रत्ययवादी ईस्वर को ही सत्ता मानते हैं।
*किसी विचार का निर्माण इंद्रियों के अनुभव से होता है इसलिए ऐसे विचारों का निर्माण सीमित है! इसलिए मनुष्य का दिमाग सीमित है, किन्तु ईस्वर इन्द्रियातीत है या इन्द्रिय रहित है, इसलिए ईस्वर के विचार असीमित है। इसी असीमित विचार से ईस्वर ने असीमित ब्रह्मांड का निर्माण किया है..!
2-यथार्तवादी, वस्तुवादी या भौतिकतावादी(Materialism) :- ये दार्शनिक वस्तु या द्रव्य या जड़तत्व को मुख्य मानते हैं। इनके अनुसार पहले तत्व आया उसके बाद विचार निर्मित हुआ …! इनका मानना है कि कोई भी विचार कितना भी प्रबल क्यों ना हो जबतक जड़तत्व नही होगा तब तक सत्ता या द्रव्य का निर्माण नही हो सकता..! अर्थात अगर मिट्टी नही होगी तो घड़ा बनाने का विचार दिमाग मे ही पड़ा रहेगा और नष्ट हो जाएगा.!अतः जड़ तत्व प्राथमिक है और विचार द्वितीयक है..! द्रव्य या substance दिमाग से स्वतंत्र है और इसका खुद का निरपेक्ष अस्तित्व है..! द्रव्य के अंदर ही विचार उपस्थित है , वह विचार जब इंद्रियों के अनुभव से मनुष्य के दिमाग तक पहुंचता है तब निर्माण होता है..!
अतः जड़पदार्थ ही प्राथमिक मूलभूत तत्व है और विचार द्वितीयक है..! इसप्रकार समस्त ब्रह्मांड किसी ईस्वर के दिमाग की उपज नही है। इसप्रकार यथार्तवादी ईस्वर की सत्ता को नकारदेते है..और मानते हैं कि समस्त ब्रह्मांड जड़तत्व से ही निर्मित है…!