तट नदी बैठा रहा
जब तट नदी बैठा रहा
सुरभि बसंत तकता रहा
बहने लगी धीमे पवन
वातावरण महका रहा
खिलने लगे पंखुड़ी कमल
मैं देख कर खोया रहा
आयी नवोढ़ा इक तभी
तब हर कदम बहका रहा
मुख छवि लगे ज्यों चाँद सी
तब देखता मुखड़ा रहा
शोभा अधर ज्यों दीखती
बिम्बाफला रक्खा रहा
रंग भर रखे नाखून में
ज्यों तूलिका सजता रहा
पुलकित हुआ मैं देख कर
अप्सरा जमीं देखा रहा
यह सोच बेकाबू हुआ
आँखे खुली सपना रहा
डॉ मधु त्रिवेदी