तजो आलस तजो निद्रा, रखो मन भावमय चेतन।
तजो आलस तजो निद्रा, रखो मन भावमय चेतन।
न हो अपव्यय ताकत का, रहो मत तात यूँ उन्मन।
मिला दुर्लभ तुम्हें नर तन, चला जाए अकारथ क्यों,
भजो श्रीकृष्ण बनवारी, जपो राधे-यशोनंदन।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
तजो आलस तजो निद्रा, रखो मन भावमय चेतन।
न हो अपव्यय ताकत का, रहो मत तात यूँ उन्मन।
मिला दुर्लभ तुम्हें नर तन, चला जाए अकारथ क्यों,
भजो श्रीकृष्ण बनवारी, जपो राधे-यशोनंदन।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद