तखन कोना करू हम आराम प्रिये
तखन कोना करू हम आराम प्रिये
जखन छोड़ि देला बौआ गाम प्रिये
चढ़ल दुपहरी सँ आंखि अन्हिआयल
सूरज के ताप सँ देह लागे हेराएल
जखन प्रेम स्नेह नुआ फहरायल
तखन कोना करु हम आराम प्रिये
होत पराउ चाहे जिनगीक बड मंहग
सातटा फेरा आ वचन कियैक टुटत
मोह माया जाल मे आँहा नै फासूं
अप्पन कर्तव्य केलौं आजो हासूं
ठानला सँ समय केर दुर होएत अन्हियारा
तखन कोना करू हम आराम प्रिये
अहा बिनु पावन चारोधाम लागैछै अधूरा
माय भगवती उगना पर अटूट आशा
देह मोछ पाकल मुदा दिलसँ वाहै जुवानि
माटि कोर सोन उगाऐब ठिह पोखर मे माछ बहरायब
दूटा परानी केर नैय अछि जिनगी ऐतैके भारी
तखन कोना करु हम आराम प्रिये
मौलिक एवं स्वरचित
@श्रीहर्ष आचार्य