तकदीर
हाथ खोलकर दिखलाया हूँ,
अपनी भाग्य लकीरों को।
आशीर्वचन प्राप्त करने को
दौड़ा देख फकीरों को।।
हर पत्थर माथा पटका हूँ
रोया खूब अकेले में।
तकदीर बदलने की खातिर
भटका हूँ कई झमेले में।।
जिस जिस पत्थर माथा पटका
छत नीचे वे सॅवर गये।
धूप अगर अक्षत के संग
फल फूल भी खूब चढ़े।।
जिन चरणों को नमन किया
वे गुरु रुप पूजे जाते हैं।
हम पहले जैसे अब भी
दर-दर शीश झुकाते हैं।।