तकदीर का तोहफा
अंधेरों के ही पाले हुए है हम ,
उजालों से हमें क्या काम ।
बुझा दो ये सारे चिराग फौरन ,
नहीं यहां चिरागों का कोई काम ।
चुभते है यह हमारी आंखों में,
अक्सर एक कोफ्त से गुजरते है हम ।
तकदीर का ही दिया हुआ है जब नजराना,
तो क्यों उस तोहफे को रुसवा करें हम ।