तकते थे हम चांद सितारे
तकते थे हम चांद सितारे
सोते थे जब छत पर
सप्त ऋषि का मंडल देखें
तारों में ध्रुव अंबर
इक डोर से बंधे थे रिश्ते
खटिया पर सब बिस्तर
पास पास से दूर हुए कक्ष
कुछ कहना भी दुष्कर
खुद से दूर आए निकल हैं
छूटी सब पगडंडी
छोटा दिखा शहर का सपना
धूल धुआं सब नश्तर
अब बचपन को याद करे क्यों
पंच तत्व की रेखा
हर पीठ वैताल टंगा है
क्या दे विक्रम उत्तर।।
सूर्यकांत