*तंजीम*
डॉ अरुण कुमार शास्त्री -एक अबोध बालक- अरुण अतृप्त ।
” तंज़ीम ”
प्रथा से ही प्रगति की दीवार लाँघ कर
प्रशस्ति के नए नए आयाम सर किये जायेंगे ।
जो हार हम न मानें तो सफलता मिलने के सभी सोपान तय किए जाएंगे ।।
हैरत से नहीं देखीये उनको जिन्होंने सर की है ऊँचाईयाँ जीवन में अपने दम पर ।।
साफ़ साफ़ लिख लीजिये, सिर्फ उनके ही तो नाम स्वर्णाक्षरों से लिखे जायेंगे ।।
मैंने कब कहा कि ये काम आपके लिए बहुत मुश्किल था असम्भव था ।।
सलीके से तरतीब से अजी साहिब एक नेक इंसान बन के तारतम्यता तो निभाइये ।।
प्रथा से ही प्रगति की दीवार लाँघ कर
प्रशस्ति के नए नए आयाम सर किये जायेंगे ।
जो हार हम न मानें तो सफलता मिलने के सभी सोपान तय किए जाएंगे ।।
तोहमत लगाकर खामख्वा बदनाम कर दिया, वो मासूम बच्चा था उसके कलेजा चाक कर दिया।
माना कि क़दम उसके गलत रास्ते पर चल दिए, लेकिन ये कौन सा तरीका है के नेस्ता नाबूद कर दिया।
कौम परस्त हो और कौम का दम भरते हो , जब बचपन ही नहीं होगा तो फिर आप सलाह भी किसे देते हो।
नई पीढ़ी पर ही तो निर्भर होता है हम नागरिकों का पुख्ता प्रमाण साहेबान।
सोचना पड़ेगा ठंडी भी रखनी होती है जुबान ओ मेरे साहेब ईमान।
प्रथा से ही प्रगति की दीवार लाँघ कर
प्रशस्ति के नए नए आयाम सर किये जायेंगे ।
जो हार हम न मानें तो सफलता मिलने के सभी सोपान तय किए जाएंगे ।।