तंग नज़री खत्म कर देता है हर इंसान को। ?
मायूसी आखिर कुफ़्र है, सब अहले ईमान को।
तंग नज़री खत्म कर देता है हर इंसान को।
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इतनी खा़मोशी है कि नग़मा ना कोई साज़ है ।
वह बदलता भी नहीं है साज़ को सामान को।
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इतनी मुश्किल से बचा लाए थे,अपने आप को।
अब तो लगता है कि ख़तरा है मेरे ईमान को।
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अब सुनाए किसको हम अपनी रूदाद ए जिंदगी।
देखने को है तरसती अजनबी इंसान को।
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टूटा दिल शायद किसी के काम आ सकता नही।
आप ही इसको संभालो मेरे दिल नादान को।
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कैसी ये आतिश फिशां है कैसे बतलाए सगी़र।
रोज दावत दे रहा है इक नए तूफान को।
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डॉक्टर सगीर अहमद सिद्दीकी खैरा बाज़ार बहराइच यूपी
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मायूसी=निराशा,उदासी
कुफ्र=इनकार करना
तंग नज़री= संकुचित दृष्टि, अनुदार, धर्माध.
इमकान=संभावना
नगमा= गीत, गाना
साज़=सामान
रूदाद =समाचार , हाल
आतिश फिशां=ज्वाला मुखी
दावत= निमंत्रण