**तंग करने लगी खुद की परछाई है**
**तंग करने लगी खुद की परछाई है**
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तंग करने लगी खुद की ही परछाई है,
देखो तो सही यह कैसी नौबत आई है।
देख लिया कोना कोना देखी दुनियादारी,
कभी न कभी काम आती अच्छाई है।
बुरे काम का बुरा नतीजा कहते हैं सारे,
जड़ें खोखली करती नाईलाज बुराई है।
छान लिया जग सारा घर जैसा धाम नहीं,
दुनिया भर की खुशी चौखट में समाईं हैं।
ज्वारभाटा से लहरों में मनोभाव छिपे हैं,
छोटे से दिल में सागर जितनी गहराई है।
जब तक हैं पास हमारे हम रहते दूर दूर,
अपनों के खोने की होती नहीं भरपाई है।
गली गली है भटक रहा जोगी मनसीरत,
दिल तो पागल,मस्ताना और हरजाई है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)