ढोंगी बाबा का दरबार
बाबा जी का दरबार लगा है,
जैसे कोई ढा़वा खुला है ।
यहां मिलती है मन की मुरादें ,
अलग-अलग भाव में यहां से खरीदें ।
जितनी बडी़ हो मन की मुराद ,
उतनी बडी़ है बाबा जी की खुराक ।
मिलती नहीं यहां मटर पनीर ,
बटती हैं यहां बाबा जी की खीर ।
बाबा जी का दरबार है या शीश महल ,
जैसे हो किसी राजा का राज महल ।
सूट-बूट और टाई में ,
आसन पर विराजमान है ।
ये कोई फैशन शो नहीं ,
ये तो बाबा जी का परिधान है ।
सुख-शांति यहां से तुम खरीदो ,
पहले बाबा जी के अकाउण्ट में पैसा तो भर दो ।
पैसा पहुचते ही मिलता है आशीष ,
बिगडे़ काम बना दे ये आशीष ।
प्रेम विवाह हो या व्यापार में तरक्की ,
नौकरी की चिंता हो या संतान की मनौती ।
बाबा जी के पास हर समस्या का हल है ,
पहले आओ – पहले पाओ की पहल (स्कीम) है ।
डां. अखिलेश बघेल
दतिया ( म.प्र. )