ढूंढ लो बुराइयां कुछ और दिन
न जाने किस बात से बेवजह डरता रहा हूं मैं
जीने के साथ-साथ,थोड़ा-थोड़ा मरता रहा हूं मैं
क्या और कहां है मेरी मंजिल नहीं मालूम मुझको
खुद की ही तलाश में अक्सर सफ़र करता रहा हूं मैं
नज़र आए तो ढूंढ लो बुराइयां कुछ और दिन
वक्त के साथ थोड़ा-थोड़ा निखरता रहा हूं मैं
आज नहीं तो कल हासिल हो जाएगी मंजिल
थककर भी रफ़्ता-रफ़्ता जो चलता रहा हूं मैं।।