ढूंढ लेता है
भलाई में बुराई का पुलिंदा ढूंढ लेता है ।
जो जैसा है वो वैसा ही चुनिंदा ढूंढ लेता है।।
बड़ा मशरूफ रहता है वह तन्हाई के आलम में ,
जो पल भर भी मिले फुर्सत तो धंधा ढूंढ लेता है।।
वो लड़ता है मगर खुद को बचाने में भी माहिर है,
वो जब गोली चलाता है तो कंधा ढूंढ लेता है।।
न जाहिर भूल कर करना तुम अपना गम कभी उसपे,
खिलाड़ी इतना शातिर है कि मोहरा ढूंढ लेता है।।
जरूरत रहनुमा की क्या जो मंजिल है खुदा का दर,
पता आसान इतना है कि अंधा ढूंढ लेता है।।
संजय नारायण