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18 May 2023 · 1 min read

ढूंढें कहाँ जा अपनी पहचान

हम ने सुना है इस दुनिया में,
है मात-पिता का ऊँचा स्थान ।
पुत्र-पुत्री नेत्र हैं इनके,काटूँ किसको,
दोनों ही इनके संतान ।
जब अपना सगा दिखे न कोई,
आँचल बचा ले तत्क्षण प्राण।
पूज्यनीय हैं, वंदनीय हैं, इस जग में,
हो इनका पूरा सम्मान ।
क्या कलयुग की छाया माया,
बदल गया इनके सोच विधान ।
सम्मानित होकर इस जग में,
कर बैठे निस्तेज स्वाभिमान ।
भेदभाव फिर उपजा इनमें ,
धूमिल हुआ सब गहरा ज्ञान ।
कैसी कलुषित प्रवृत्ति इनमें जागी,
पुत्री पर दें हम क्यों ध्यान ।
पुष्प हैं किसी और चमन के,
क्यों बांटूँ अपना उद्यान ।
दोष कहो क्या उस पुत्री का,
ढूँढे कहाँ जा अपनी पहचान ।
जन्मदाता ही हुए न अपने,
तो क्या होगा कोई अंजान ??—क्रमशः

उमा झा

Language: Hindi
164 Views
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