ढूँढ रहा हूँ
बड़े जतन से सिले थे’ माँ ने, वही बिछौने ढूँढ रहा हूँ
ढूँढ रहा हूँ नटखट बचपन, खेल-खिलौने ढूँढ रहा हूँ
नदी किनारे महल दुमहले, बन जाते थे जो मिनटों में
रेत किधर है, हाथ कहाँ वो नौने-नौने ढूँढ रहा हूँ
विद्यालय की टन-टन घंटी, गुरुवर के हाथों में संटी
बरगद वृक्ष तले भंडारे, पत्तल दौने ढूँढ रहा हूँ
डाँट-डपट सँग रूठा-राठी, मीठी-मीठी लोरी माँ की
बुरी नजर का काला धागा, कहाँ डिठौने ढूँढ रहा हूँ
चार-चार दिन की बारातें, पंगत में गारी से बातें
मधुर मिलन वो हँसी-ठिठोली, स्वप्निल गौने ढूँढ रहा हूँ
कल-कल करते झरने नदिया, साँझ समय बहती पुरवाई
वन में निडर कुलाँचें भरते, वो मृग-छौने ढूँढ रहा हूँ
सारा जीवन बीत चला है, अमृत का घट रीत चला है
सौंधी-सौंधी माटी का घर, स्वप्न सलौने ढूँढ रहा हूँ