ढीठ बनने मे ही गुजारा संभव है।
ढीठ बनने मे ही गुजारा संभव है।
सच ही कहा गया है कि जब तक ठोकर नही मिलती तब तक अक्ल नही आती और हमने तो अब हमारे समाज से इतनी ठोकरें खा ली है कि अक्ल भी आ गयी है और हम ढीठ भी हो गए हैं। अब हम माफ तो करते हैं पर दिल से उसकी जगह साफ भी कर देते हैं। दरअसल ये दुनिया, ये समाज बहुत ही अजीब है। आप जितना सुनेंगे ये उतना सुनाते रहेंगे। आप एक बार दबेंगे ये आपको हमेशा दबाते रहेंगे। आप इनकी हां में हां मिलाएंगे, ये खुश हो जाएंगे। आप इनका सच कहेंगे ये आपको बुरा बनाएंगे। मत ध्यान दीजिए कौन आपका बारे में क्या कहता है। आप अच्छे हैं या बुरे हैं यह आप खुद से पूछिए…. अपने कर्मों से निर्णय लीजिए। ढीठ बनने मे ही गुजारा संभव है, नही तो लोग आपका फायदा उठाने मे ज़रा भी नही सोचेंगे। यकीनन सबकी सुनिए पर फैसला अपनी बुद्धि विवेक से ही लिजिए।