ढाई दिन का प्यार
हवा के झोंके की तरह एक लड़की उस दिन आई
ना मैं वाकिफ़ कि क्या उसमे अच्छा, क्या उसमे बुराई
फ़िर वह बोली आप बड़े हसीन लगते हो
हम अजनबियों को, अपनी लेखनी से ठगते हो
खैर आज मुझे आप से एक बात है बतानी
नाम करनी है आपके अपनी शेष जिंदगानी
तब देर किए बिना मैंने दिया उसे ज़वाब
पूछा क्यों देख रहीं तुम, ऐसा मेरे साथ ख्वाब
बहुत हो सकते हैं इस जमाने में विकल्प
फ़िर कैसी ये जिद और कैसा ये संकल्प
बोली एक ही वज़ह है मेरे होने की आकर्षित
वास्तव में वह कैसा होगा, जिसका लेखन सारगर्भित
और बातों का सिलसिला मैंने जारी किया
परखने के लिए आखिर, उसको एक मौका दिया
तब जाकर मुझे ढाई दिन में, हो गया एहसास
सिर्फ सनक है इसमे, नहीं बुद्धि कोई खास
फ़िर खोल ज्ञान के नेत्र, कुछ बातें उसको समझाई
नियन्त्रण रखो अभी, तुम पर हावी है तरुणाई
ये वक़्त सिर्फ अभी पढ़ाई का है
जिस उम्र में हो तुम, वह भविष्य की लड़ाई का है
छोड़ो ये हंसी ठिठोली और मुझ से दूरी बनाओ
जीवन को अभी अपने सपनों से सजाओ
~poetry By Satendra