ढाई आखड़
प्रेम किया है मैंने
सच्चा प्रेम…….
सिर्फ तुमसे
कहीं उससे अधिक
मीरा ने किया था
कृष्ण से जितना
राधा ने किया था
श्याम से जितना
शायद नहीं होगा नीर
सागर में उतना
आज भी महसूस करती
तुम्हारी आहट
भर जाती हैं जो
जीने का संबल
मुक्त नहीं कर पायी
स्वयं को
स्मृति गंध से तुम्हारी
आज भी मेरे
रोम-रोम में
सिर्फ तुम बसे हो
मेरा वजूद…….
मेरा अस्तित्व……
आज भी है अधूरा
होगा एक दिन पूर्ण
मेरा अधूरापन
सिर्फ तुम्हारे आगमन से
आज भी मैं
आकंठ डूबी हूँ
तुम्हारी भक्ति में……
तुम्हारी अराधना में…….
इस जन्म में
मिलन हमारा
नहीं हुआ तो क्या
रिश्ते हमारे
पूर्ण नहीं हुये तो क्या
करुँगी मैं इंतजार
अगले जनम तक
और फिर उसके
अगले जनम तक
सातों जनम तक
और फिर जनम-जनम तक
मेरी भक्ति……
मेरी अराधना…….
होगी सफल एक दिन
प्रतीक्षा होगी पूर्ण
और तुम्हें आना ही होगा
यदि मेरी भक्ति
और मेरी अराधना
होगी सच्ची
तो एक दिन
तुम आओगे
बादलों का सीना चीरकर
और नहीं होगा उस क्षण
जाति-पांति की दीवारें
ऊँच-नीच का भेद-भाव
इस संसार से परे
बादलों के पार
सिर्फ होंगे मैं और तुम
अपनी अलग होगी दुनियाँ
नहीं होगा कोई और
मेरे और तुम्हारे सिवा
प्रेम लिपट जायेगा मुझमें
और मैं-विलीन हो जाऊँगी प्रेम में
प्रेम की साक्षात प्रतिमूर्ति
मैं तुम्हारी दीवानी
तुम्हारी प्रतीक्षा में
लेकर हाथों में
“पलाश का फूल
तुमसे प्रेम करते-करते
सिर्फ और सिर्फ
“ढ़ाई आखड़”
रह जाऊँगी मैं……।।
अमिताभ कुमार “अकेला”
जलालपुर, मोहनपुर, समस्तीपुर