ढलती गांव की शाम
उड़ती धूल लौटते पंछी ढलती एक शाम
वो ठंडी हवाएं वो ठहरा सा सुहाना मौसम
उस गौधुली बेला में सब दुबकते घरों में
मंदिर में आरती और मस्जिद में नमाजे
दौड़ता है बचपन कही कही टहलता बुढापा
कही बर्तन खनखनाते कही खाने की खुशबू
लौटा है मज़दूर ले हाथो में खाने का सौदा
थाली में रोटी की चाहत में क्या क्या न खोदा
चौपाल पे दिल्ली तो नुक्कल पे है दुनिया
ये ही कल आज और कल की कहानी
ये मेरे भारत के एक गाँव में एक शाम की कहानी